सरकारी अस्पताल के बेड फुल,नामी गिरामी अस्पताल का बिल 30 से 35 हजार पर डे, कहां से लाए पैसा  


-सीएमओ के आगे गिडगिडाने का भी लाभ नहीं
-कोरोना के पीडितों को नहीं मिल पा रहा है इलाज
मनस्वी वाणी संवाददाता
गाजियाबाद। जहां डाक्टरों को भगवान के तौर पर देखा जाता है तथा डिग्री मिलने के दौरान शपथ ली जाती है कि वह अपने जीवन को लोगों की सेवा में लगाएंगे,लेकिन दुनिया में महामारी के तौर पर उभरे कोरोना के बीच जन सेवा की भावना एक तरह से देखा जाए तो वह गायब होकर रह गई है। नेहरू नगर के काल्पनिक नाम महेंद्र सिंह परेशान है। वजह श्री सिंह के ससुर पिछले एक सप्ताह से शहर के एक नामी गिरामी अस्पताल में एडमिट है। हर रोज तीस से 35 हजार रूपए उनसे जमा करा लिए जाते है। इसके अलावा दवाईयों का पर्चा अलग से थमा दिया जाता है। श्री सिंह सीएमओ कार्यालय में अपने ससुर को जिले के सरकारी अस्पताल में एक बेड उपलब्ध कराने के लिए गिडगिडाते हुए थक गए है। सीएमओ के द्वारा कहां जाता है कि जितने भी कोरोना के मरीजों के लिए अस्पताल बनाए गए है उनमें बेड खाली नहीं है। श्री सिंह को ये समझ नहीं आ रहा है कि ससुर के इलाज के लिए कहां से पैसे की व्यवस्था करें। जी हां कुल मिलाकर देखा जाए तो जिले के हालात बहुत ही खराब है। जिले का प्रशासन भले ही लाख दावे करें कि उसके द्वारा आवश्यकता के अनुसार कोरोना पीडितों को भर्ती करते हुए इलाज के लिए बेड की उपलब्धता सुनिश्चित की गई है,लेकिन धरातल पर हालात ठीक इसके विपरित है। बताते है कि पीडितों के परिजन सरकारी अस्पतालों में भटकने के लिए विवश है,कोई सुनने वाला नहीं है। अधिकांश नामी गिरामी अस्पताल लूट का केंद्र बनकर रह गए है। सरकार के द्वारा किसी तरह के इलाज आदि का रेट तय न किए जाने का नतीजा ये है कि हालात दिनों दिन बद से बदतर हो रहे है। जो व्यक्ति आर्थिक तौर पर अधिक कमजोर है,वह नामी गिरामी अस्पताल में पीडित का इलाज कराने की सोचते हुए भी कतरा रहे है।
   पहले दिन ही घर घर मरीज खोज के अभियान का विरोध
यू तो कोरोना के मरीजों की खोज के लिए बृहस्पतिवार से अभियान का श्रीगणेश किया गया। बडी संख्या में पिलखुआ आदि के मेडिकल कालेज के स्टूडेंट आदि को प्रहलादगढी स्थित न्यू प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर पहुंचने के लिए कहा गया था। जब ये तमाम स्टूडेंट न्यू प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर पहुंचे तो वहां पर न तो पीने के लिए स्वच्छ पानी की ही व्यवस्था थीं और न ही सेनेटाइजर आदि के इंतजाम किए गए थे। कुछ स्टूडेंट के द्वारा उप मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा विश्राम सिंह के सामने अव्यवस्थाओं को लेकर कडा विरोध जताया गया। स्टूडेंट का कहना था कि तडके से दोपहर तक मरीज खोजने के बदले में केवल एक दिन के 75 रूपए मात्र दिए जाएंगे,लेकिन उन्हें इस बीच कुछ हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा।